शायरों की बस्ती में कदम रखा तो जाना, ग़मों की महफिल भी कमाल जमती है|
फरियाद कर रही है यह तरसी हुई निगाह,
देखे हुए किसी को ज़माना गुजर गया,
पता नहीं कब मिलेगा |
जो तुम्हें रुला सकता है,
वो तुम्हें भूला भी सकता है|
कुछ लोग सदमे की तरह होते है,
जिनसे हम कभी उभर नही पाते है|
नहीं मिला कोई तुम जैसा आज तक,
पर ये सितम अलग है की मिले तुम भी नही|
तेरा ख्याल भी आया जहन में तो मुकर जायेंगे,
ये तेरी गलतफहमी है कि हम अब भी तुझे चाहेंगे|
शायरों की बस्ती में कदम रखा तो जाना,
ग़मों की महफिल भी कमाल जमती है|
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