रूह के रिश्तों की यही ख़ासियत है हुज़ूर|

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दूरियां जब बढ़ने लगी तो गलतफहमी भी बढ़ने लगी,
फिर उसने वहीं सुना जो मैंने नही कहा|



देखो ना हम पास आने लगे, देखो ये दिल तुम लुभाने लगे,
करते थे छोड़कर जाने की बातेंअब ये ख़्याल भी तड़पाने लगे|


ऐ जो हल्की सी फ़िक्र करतें हैं ना वो हमारी,
बस इसी लिए आजकल हम बेफ़िक्र रहने लगें है|



रूह के रिश्तों की यही ख़ासियत है हुज़ूर,
महसूस हो ही जाती हैं कुछ अनकही बातें|



लो माना कि हमें प्यार का इज़हार करना नहीं आता,
जज़्बात न समझ सको, इतने नादान तो तुम भी नहीं|



कैसे कहूं की रूह में बसने लगे हो तुम,
आगाज़ ज़िंदगी का होने लगे हो तुम|



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